बिहार चुनावों के दौरान वरिष्ठ कांग्रेस नेता अशोक गहलोत पटना पहुंचे. उन्होंने पहले राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव से मुलाकात की.

गहलोत के हस्तक्षेप से बचा महागठबंधन
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रमुख भूमिका निभाई. उन्होंने बिहार विधानसभा चुनावों से पहले महागठबंधन के बड़े विवाद को सुलझाया. आखिरी क्षण तक सीटों के बंटवारे का सही फॉर्मूला तय नहीं हो पाया था. झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के अलग होने के बाद महागठबंधन पर टूटने का गंभीर खतरा मंडरा रहा था. गहलोत के पटना पहुंचने से स्थिति संभालने में मदद मिली.
उप मुख्यमंत्री की पहेली
गहलोत ने सबसे पहले लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव से मुलाकात की. इसके बाद उन्होंने मुकेश सहनी से बातचीत की. कई दौर की बैठकों के बाद महागठबंधन ने एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस की. उन्होंने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया. हालांकि, सबसे बड़ी पहेली उप मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर थी.
“उप मुख्यमंत्री नहीं तो गठबंधन से अलग” – मुकेश सहनी
सूत्रों ने खुलासा किया कि मुकेश सहनी लगातार गठबंधन के नेताओं पर दबाव बना रहे थे. वे खुद को उप मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करवाना चाहते थे. तेजस्वी यादव कथित तौर पर इस विचार के पक्ष में नहीं थे.
तेजस्वी चाहते थे कि पूरा चुनाव उनके व्यक्तित्व पर लड़ा जाए. इससे जीत की स्थिति में पूरा श्रेय उन्हीं को मिलता. इस मुद्दे पर असहमति बहुत बढ़ गई थी. मुकेश सहनी ने गठबंधन से अलग होने तक की धमकी दे दी थी. उन्होंने कहा कि उन्हें डिप्टी सीएम का चेहरा नहीं बनाया गया तो वे गठबंधन से बाहर हो जाएंगे.
कांग्रेस ने संभाला उप मुख्यमंत्री विवाद का मोर्चा
तेजस्वी यादव और मुकेश सहनी के बीच मामला काफी बिगड़ गया था. कांग्रेस पार्टी को बीच-बचाव करना पड़ा और मोर्चा संभालना पड़ा. कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम अशोक गहलोत पटना पहुंचे. उन्होंने दोनों पक्षों को एक साथ बैठाकर सफलतापूर्वक समझाया.
सूत्रों के अनुसार, गहलोत ने तेजस्वी यादव को सलाह दी, “पहले चुनाव जीतिए, सरकार बनाइए और मुख्यमंत्री तो आप ही बनेंगे.” उन्होंने आगे कहा, “अगर गठबंधन ही टूट गया तो सरकार का सवाल ही नहीं उठेगा.”
कांग्रेस की मध्यस्थता के बाद सहनी बने उप मुख्यमंत्री
गहलोत की मध्यस्थता के बाद तेजस्वी यादव आखिरकार सहमत हो गए. सहमति बनने के बाद साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में घोषणा की गई. मुकेश सहनी को उप मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश किया जाएगा. उन्होंने यह भी जोड़ा कि उप मुख्यमंत्री अन्य समुदायों से भी चुने जा सकते हैं. इससे विभिन्न वर्गों में असंतोष फैलने से रोका जा सकेगा.
गहलोत के समय पर हस्तक्षेप ने महागठबंधन को टूटने से बचा लिया. इससे चुनाव अभियान की दिशा भी तय हो सकी. राजनीतिक गलियारों का मानना है कि अशोक गहलोत ने एक बार फिर अपनी राजनीतिक ‘जादूगरी’ दिखाई. उन्होंने एक असंभव लगने वाले सौदे को संभव बना दिया. यही वजह रही कि तेजस्वी यादव को अंततः महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया जा सका.
वीआईपी सूत्रों ने, हालांकि, कहा कि कांग्रेस अपने रुख पर स्पष्ट नहीं थी. यह डील राहुल गांधी के दखल के बाद ही फाइनल हुई. सहनी ने तेजस्वी और गहलोत के सामने राहुल गांधी को फोन किया. उन्होंने राहुल से बात की और फिर उसी कॉल से गहलोत को भी उनसे बात कराई. इस फोन कॉल के तुरंत बाद घोषणा कर दी गई.








